भारत में ब्रिटिश नीतियों का सर्वेक्षण


               
                                                                                       
       भारत में ब्रिटिश नीतियों का सर्वेक्षण

दोस्तो हम इस पोस्ट में (भारत में ब्रिटिश नीतियों का सर्वेक्षण) ias competition  knowledge ke परिपस से  यह आर्टिकल लिखा है 
प्रशासनिक नीतियां
1857 के पूर्व आधुनिक तरीके से भारत को विकास के पथ पर अग्रसर करने की नीति के विरुद्ध सरकार ने अब व्यापक प्रतिक्रियावादी नीतियों का अनुसरण प्रारंभ कर दिया इसके पीछे सरकार का यह मानना था कि भारतीय स्वशासन के लिए उपयुक्त नहीं है तथा उनके लिए अंग्रेजों की उपस्थिति अपरिहार्य है
बांटो एवं राज करो की नीति

अब अंग्रेजों ने साम्राज्य के विरुद्ध किसी संगठित जन प्रतिक्रिया को रोकने का दृढ़ निश्चय कर लिया तथा बांटो और राज करो  की नीचतापूर्ण नीतिप्रारंभ कर दी इस नीति के तहत उन्होंने शासकों को अपनी प्रजा के विरुद्ध एक राज्य को दूसरे राज्य के विरुद्ध एक क्षेत्र को दूसरे क्षेत्र के विरुद्ध तथा हिंदुओं को मुसलमानों के विरुद्ध उकसाने की नीति अपनाई

18 सो 57 के विरुद्ध विद्रोह के पश्चात मुसलमानों के दमन की जो नीति अपनाई गई थी सरकार ने उसे त्याग दिया तथा निश्चय किया कि वह मुसलमानों के मध्य एक उच्च शिक्षित वर्ग का प्रयोग राष्ट्रवाद के उदय को रुकने में करेगी अपनी नीति के तहत उसने मुसलमानों को शिक्षा तथा सरकारी सेवाओं में प्रोत्साहन देना शुरू कर दिया तथा उनके राजनीतिक शोषण की
प्रक्रिया भी प्रारंभ कर दी इस कार्य के पीछे उसकी मंशा थी शिक्षित भारतीयों के मध्य टकरा पैदा करना तथा उसका उपयोग एक हथियार के रूप में उपनिवेशी शासक के हितों के लिए कर पाने में सक्षम होना
शिक्षित भारतीयों के प्रति द्वेष
भारत के उभरते मध्यवर्गीय राष्ट्रवादी नेतृत्व में अंग्रेजों की शोषणकारी प्रशासनिक नीतियों का विश्लेषण किया तथा प्रशासन में भारतीयों की हिस्सेदारी की मांग की इस समय जब 
भारत में राष्ट्रवादी आंदोलन का शुभारंभ हुआ 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना अंग्रेजों ने इस कदम को उपनिवेशी शासक के विरुद्ध एक चुनौती के रूप में स्वीकार किया तथा उसने उस राष्ट्रवादी नेतृत्व के विरुद्ध शत्रुता पूर्ण रवैया अपना लिया वास्तव में इसके बाद अंग्रेजों ने उन सभी व्यक्तियों एवं प्रयासों का विरोध किया जिन्होंने आधुनिक शिक्षा की वकालत की
जमीदारों के प्रति दृष्टिकोण
1857 के विद्रोह को कुचलने के बाद ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों के अत्यंत प्रतिक्रियावादी समूह अर्थात भू राजस्व स्वामियों और जमीदारों के प्रति जी मित्रता का हाथ बढ़ाया सरकार ने उन्हें अपना भक्त बनाने के लिए कई प्रकार की उपाधियां प्रदान की अनेक जमीदारों को उनकी पुरानी जमीदारी ओं वापस लौटा दी गई उदाहरण अवध राज्य के अधिकांश तालुकदार ओं की जमीने उन्हें लौटा दी गई सरकार ने जमीदारों एवं भू स्वामियों को भारतीयों का परंपरागत नेता कहा उनके सभी विशेष विशेष अधिकारों तथा स्वार्थों की रक्षा की गई तथा उन्हें खुश करने के निमित्त सरकार ने किसानों के हितों की बलि चढ़ा दी वस्तुत सरकार इस बात को भलीभांति अवगत हो चुकी थी कि जमीदारों का तत्कालीन भारतीय लोगों पर गहरा प्रभाव है भले ही इसका आधार जमीदारों की शक्ति ही था सरकार का अनुमान था कि वह इनका प्रयोग कर शिक्षित भारतीयों की मांगों को भली-भांति कुचल सकती है व्यवहारिक रूप में अंग्रेजों का अनुमान सही निकला उसके प्रयासों से धीरे-धीरे भूस्वामी और जमीदार उपनिवेश ई शासक के भक्त बन गए तथा उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन में अंग्रेजों का खुलकर साथ निभाया इसके पीछे जमीदारों की यह सोच थी कि उनके विशेष अधिकारों एवं स्वार्थों की पूर्ति के लिए ब्रिटिश राज्य का होना आवश्यक है

जमीदारों के प्रति दृष्टिकोण
अंग्रेजों द्वारा भारतीय समाज के प्रतिक्रियावादी तत्वों का समर्थन करने का निर्णय लेने के कारण सरकार ने सामाजिक सुधारों से अपना समर्थन वापस ले लिया अंग्रेजों का मानना था कि इन सुधारों का समर्थन करने के कारण समाज का उड़ी वादी तब का उसके विरुद्ध हो जाएगा तथा सरकार को अपने क्रोध का निशाना बनाएगा इसके अतिरिक्त अंग्रेजों ने प्रतिक्रियावादी तत्वों को बढ़ावा देने के लिए जातीय एवं संप्रदाय चेतना को प्रोत्साहित किया

सरकार द्वारा सेना एवं नागरिक प्रशासन पर किए जा रहे भारी व्यय तथा विभिन्न विद्रोह को कुचलने में संसाधनों के अंधाधुंध उपयोग से शिक्षा स्वास्थ्य स्वच्छता एवं भौतिक आधारभूत ढांचे इत्यादि जैसे सामाजिक सेवाएं उपेक्षित हो गई तथा इन पर किए जाने वाला व्यय अत्यल्प रह गया जन सामान्य के लाभार्थी किए जाने वाले विकास कार्य लगभग ठप हो गए तथा अधिकांश सरकारी योजनाएं समाज के उच्च व विशिष्ट वर्गों के हितों के अनुरूप बनने लगे प्रशासनिक व्यय का एक बड़ा हिस्सा उच्च वर्गों की सुविधा के आसपास सिमट कर रह गया

श्रमिक विधान
19वीं शताब्दी में यूरोप में हुए औद्योगीकरण के परिप्रेक्ष्य में भारत में इस अवधि में विभिन्न कारखानों एवं भगवानों में कार्य की दशाएं अत्यधिक दयनीय थी कार्य के घंटे काफी लंबे थे तथा पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं एवं बच्चों को भी काफी लंबे समय तथा काम करना पड़ता था इन मजदूरों का वेतन भी काफी कम था कार्य स्थलों में अत्यधिक होती थी तथा स्वच्छ हवा इत्यादि की समुचित व्यवस्था नहीं थी प्रदूषित हवा की निकासी के लिए आवश्यक सुविधाओं का अभाव था तथा श्रमिकों को कम रोशनी में भी घंटों काम करना पड़ता था कार्य स्थलों में प्रायोगिक तौर पर सुरक्षा उपाय भी अल्प होते थे लेकिन आश्चर्यजनक रूप से भारत में कारखानों में कार्यरत श्रमिकों की दशाओं में सुधार एवं उनके लिए विधान बनाने की मांग सर्वप्रथम भारत में नहीं अपितु ब्रिटेन में लंकाशायर के कपड़ा कारखानों के मालिकों द्वारा उठाई गई उन्हें डर था कि भारतीय कपड़ा उद्योग सस्ती मजदूरी के कारण उनका प्रतिद्वंदी ना बन जाए इस मांग से भारतीय श्रमिक नेता काफी प्रभावित हुए तथा उन्होंने मांग की की भारती कपड़ा मिलों की निम्न स्तरीय कार्य दशा में सुधार किया जाए तथा मजदूरों का शोषण रोका जाए उन्होंने कारखानों में कार्य दशाओं (वर्किंग कंडीशन )की जांच करने के लिए एक आयोग गठित करने की मांग भी की 1875 में ऐसे प्रथम आयोग की नियुक्ति की गई तथा 1881 में प्रथम कारखाना अधिनियम बनाया गया

भारतीय कारखाना अधिनियम 1881:
यह अधिनियम बाल श्रमिकों की समस्याओं से संबंधित था 7 से 12 वर्ष की आयु के बीच के इसके मुख्य प्रावधान निम्न अनुसार थे
  • 7 वर्ष से कम आयु के बच्चों के काम करने पर रोक लगाई जाए
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  • बच्चों के लिए 1 दिन में काम करने की अवधि अधिकतम 9 घंटे से अधिक नहीं होनी चाहिए
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  • बाल श्रमिकों को 1 माह में चार अवकाश दिए जाएं
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  • खतरनाक मशीनों के चारों ओर बाड़ लगाई जाए
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भारतीय कारखाना अधिनियम 1891:
बच्चों के काम करने के लिए न्यूनतम आयु 7 वर्ष और 12 वर्ष से बढ़ाकर 9 और 14 वर्ष कर दी गई
बच्चों के लिए काम करने के घंटों को घटाकर 7 घंटे प्रतिदिन कर दिया गया
महिलाओं के लिए काम करने का समय 11 घंटे कर दिया गया जिसमें 1 घंटे का मध्य अवकाश निश्चित किया गया लेकिन पुरुषों के लिए काम की घंटी अभी भी निश्चित नहीं रहे
लेकिन इन नियमों को अंग्रेजों के स्वामित्व वाले चाय एवं कहवा काफी बागानों मैं लागू नहीं किया गया जहां मजदूरों निर्दयता पूर्ण शोषण किया जाता था तथा उनकी स्थिति दासो के समान थी कुछ बागान मालिक के मजदूरों से एक अनुबंध पत्र पर दस्तखत करवा लेते थे जिसके पश्चात मजदूर उस मालिक के यहां काम करने को विवश हो जाता था तथा वह किसी प्रकार के काम से इनकार नहीं कर सकता था सरकार ने भी ऐसे बागान मालिकों को इस प्रकार के भेदभाव पूर्ण नियम बनाने हेतु प्रोत्साहित किया इस अनुबंध की अवहेलना फौजदारी अपराध था जिसमें बागान मालिक को यह अधिकार दिया गया था कि वह दूसरी मजदूर को गिरफ्तार कर दंडित कर सकता था बीसवीं शताब्दी में राष्ट्रवादी दबाव के कारण कई अन्य श्रमिक विधान बनाए गए लेकिन मजदूरों की दशा में कोई बहुत ज्यादा सुधार नहीं आया
प्रेस की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध
1835 में चार्ल्स मेडकाफ  ने भारतीय प्रेस पर लगाए गए प्रतिबंधों को हटा लिया लेकिन लिटन जो की इस बात से भयभीत था की प्रेस के द्वारा राष्ट्रवादी भारतीयों मैं चेतना का प्रसार कर सरकार के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं वह भारतीय प्रेस के दमनभारतीय राष्ट्रवादी प्रेस की अत्याधुनिक तकनीकों का उपयोग करने में अत्यधिक सजग थे तथा अत्यंत शीघ्रता से इसका उपयोग कर लेते थे उनका उद्देश्य प्रेस के माध्यम से लोगों को शिक्षित बनाना भारतीयों में चेतना जागृत करना तथा सरकार की दमनकारी एवं पक्षपातपूर्ण योजनाओं की आलोचना करना था
 पर उतर आया तथा उसने 1878 में लोकप्रिय भारतीय भाषा समाचार पत्र अधिनियम( वर्नाक्यूलर ) प्रेस एक्ट पारित कर दिया तीव्र जन विरोध के कारण लॉर्ड रिपन ने 1882 में इस घृणत अधिनियम को रद्द कर दिया इसके पश्चात लगभग दो दशकों तक भारतीय प्रेस स्वतंत्रता के साए में फलता फूलता रहा लेकिन स्वदेशी एवं बंग भंग विरोधी आंदोलन के समय 1908एवं 1910 में इस पर अनेक प्रतिबंध लगा दिए गए
रंगभेद की नीति
अंग्रेजों ने प्रजातीय सर्वश्रेष्ठ का के विचार का अत्यंत व्यवस्थित ढंग से पालन किया अपनी रंगभेद की नीति के चलते उन्होंने स्वयं को सर्वश्रेष्ठ घोषित किया तथा प्रशासन के उच्च पदों से भारतीयों को दूर रखा अंग्रेजों ने नागरिक प्रशासन एवं सेना के साथ ही रेल के डिब्बे पार्क होटलों तथा क्लबों इत्यादि में भी रंगभेद की नीति को लागू करने का घृणित प्रयास किया अपनी प्रजातीय सर्वश्रेष्ठता को प्रदर्शित करने के लिए अंग्रेजों ने भारतीयों को सरेआम पीटने जिंदा जला देने तथा उनकी हत्या कर देने जैसे अमानवीय एवं कायरतापूर्ण हथकंडे भी अपनाए एक स्थान पर लॉर्ड एल्गिन ने लिखा कि हम भारत पर केवल इसलिए राज्य कर सके क्योंकि हम श्रेष्ठ नस्ल के थे यद्यपि हमें भारतीयों को सरकारी सेवा में आने हेतु प्रोत्साहित करना चाहिए किंतु उन्हें इस बात का बराबर एहसास कराते रहना होगा कि वह हमसे निकृष्ट हैं तभी हमारे साम्रज्य के हित सुरक्षित रह सकेंगे

दोस्तो हम इस पोस्ट  की जानकारी अगली पोस्ट में उपलब्ध कराएगे दोस्तो आपको यह आर्टिकल  अच्छा  लगा  हो तो कमेंट कर के जरूर बताये





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