रियासतो का एकीकरण 1947


दुतीय विश्व युद्ध प्रारंभ होने के पश्चात भारत में तीव्र राजनैतिक गतिविधियां प्रारंभ होने तथा कांग्रेस द्वारा असहयोग की नीति अपनाये जाने के कारण ब्रिटिश सरकार ने क्रिप्स मिशन (1942), वैवेल योजना (1945), कैबिनेट मिशन (1946) तदुपरांत एटली की घोषणा (1947) द्वारा गतिरोध को हल करने का प्रयत्न किया।
क्रिप्स मिशन ने भारतीय रियासतों की सर्वश्रेष्ठता को भारत के किसी अन्य राजनीतिक दल को देने की संभावना से इंकार कर दिया। रियासतों ने पूर्ण संप्रभुता संपन्न एक अलग गुट बनाने या अन्य इकाई बनाने की विभिन्न संभावनाओं पर विचार-विमर्श किया- जो कि भारत के राजनीतिक परिदृश्य में एक तीसरी शक्ति के रूप में कार्य करे।
3 जून की माउंटबैटन योजना तथा एटली की घोषणाओं में रियासतों को यह अधिकार दिया गया कि वे भारत या पाकिस्तान किसी भी डोमिनियन में सम्मिलित हो सकती हैं। लार्ड माउंटबैटन ने रियासतों को संप्रभुता का अधिकार देने या तीसरी शक्ति के रूप में मान्यता देने से स्पष्ट तौर पर इंकार कर दिया।
राष्ट्रीय अस्थायी सरकार में रियासत विभाग के मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल, जिन्हें मंत्रालय के सचिव के रूप में वी.पी. मेनन की सेवायें प्राप्त थीं, भारतीय रियासतों से देशभक्तिपूर्ण अपील की कि वे अपनी रक्षा, विदेशी मामले तथा संचार अवस्था को भारत के अधीनस्थ बना कर भारत में सम्मिलित हो जायें। सरदार पटेल ने तर्क दिया कि चूंकि ये तीनों ही मामले पहले से ही ताज की सर्वश्रेष्ठता के अधीन थे तथा रियासतों का इन पर कोई नियंत्रण भी नहीं था अतः रियासतों के भारत में सम्मिलित होने से उनकी संप्रभुता पर कोई आंच नहीं आयेगी। 15 अगस्त 1947 के अंत तक 136 क्षेत्राधिकार रियासतें भारत में सम्मिलित हो चुकी थीं। किंतु कुछ अन्य ने स्वयं को इस व्यवस्था से अलग रखा-








भारत सरकार ने 5 जुलाई 1947 को भारतीय रियासत विभाग नामक एक पृथक विभाग की स्थापना की जिसका कार्यभार सरदार वल्लभभाई पटेल को सौंपा गया
15 अगस्त 1947 तक अधिकांश भारतीय रियासत ने भारत में शामिल होना स्वीकार कर लिया था केवल जूनागढ़ हैदराबाद तथा कश्मीर ऐसे राज्य थी जिन्होंने भारत संघ में शामिल होने से इंकार कर दिया

जूनागढ़-

जूनागढ़ की जनसंख्या लगभग 7 लाख थी यह राज्य चारों तरफ से भारत से  गिरा था यहां का नवाब महा बटन रसूल खान था किंतु राज्य की 80 प्रतिशत जनसंख्या हिंदू थी सितंबर 1947 में जूनागढ़ रियासत पाकिस्तान में शामिल होने की घोषणा कर दी जबकि राज्य की अधिकांश जनसंख्या भारत में रहना चाहती थी राज के नागरिकों ने इस निर्णय के विरुद्ध विद्रोह कर स्वतंत्रता अस्थाई हुकूमत की स्थापना कर ली इस से घबराकर नवाब पाकिस्तान भाग गया तत्पश्चात जूनागढ़ के दीवान शहनवाज भुट्टो ने 8 नवंबर 1947 को जूनागढ़ के भारत में विलय का पत्र भारत सरकार को भेजा फलत 9 नवंबर 1947 को भारत सरकार ने जूनागढ़ का प्रशासन हस्त गत कर लिया बाद में 20 जनवरी 1948 को जनमत संग्रह करवा कर अधिकृत रुप से जूनागढ़ का  बीलय भारत संघ में हो गया क्योंकि जनमत संग्रह में निर्णय लगभग पूरी तरह भारत की पक्ष में आ गया

हैदराबाद-

हैदराबाद भारत की सबसे बड़ी रियासत थी यह चारों तरफ से भारतीय भूभाग से गिरी थी यहां का शासक निजाम मुसलमान था जब की जनसंख्या हिंदू थी हैदराबाद के निजाम मीर उस्मान अली खान ने पाकिस्तान की स्वर परस्ती मैं स्वयं को स्वतंत्र बनाए रखने की मनसा जताई 29 नवंबर 1947 को भारत सरकार एवं हैदराबाद की मध्य एक बरस की अवधि के लिए यथा स्थिति समझौता संपन्न हुआ जिससे कि 15 August 1947 से पूर्व की स्थिति कायम रहे किंतु नजाने समझोते का पालन नहीं किया निजाम का झुकाव पाकिस्तान की ओर था इसलिए वह जानबूझकर भारत के साथ विलय को टाल रहा था तथा अपनी सैनिक छमता बढ़ाकर संघर्ष की तैयारी कर रहा था इसी बीच एक कट्टर मुस्लिम संगठन इति हद उल मुस्लिमीन ने अपने अधिकार सैनिकों की सहायत  से तथा नवाब की मदत से हैदराबाद की जनता का दमन करना प्रारंभ कर दिया इस के विरुद्ध कांग्रेस ने इस दमन कारी नीति के विरुद्ध सत्याग्रह आंदोलन छेड़ा दूसरी तरफ साम्यवादी ने भी हैदराबाद की किसानों को संगठित किया

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