प्रस्तावना में निहित दर्शन


प्रस्तावना में निहित दर्शन

संवैधानिक दर्शन का अभिप्राय उन आदेशों तथा नीतियों से है जिन्हें भारतीय संविधान अभी प्रेरित हुआ एवं जिन पर हमारी शासन प्रणाली और संविधान आधारित है प्रत्येक देश की मूल विधि का अपना विशेष दर्शन होता है हमारे देश के संविधान का मूल दर्शन हमें संविधान की प्रस्तावना में मिलता है जिसे के एम मुंशी ने राजनीतिक कुंडली का नाम दिया है प्रस्तावना के अंतर्गत निम्नलिखित तत्वों का समावेश है

स्वतंत्रता एवं प्रभुता संपन्न

भारत का संविधान ब्रिटिश संसद की देन नहीं है इसे भारत के लोगों ने एक प्रभुत्व संपन्न संविधान सभा मैं समवेत अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से अधिक कथित किया था यह सभा अपने देश के राजनीतिक भविष्य को निर्धारित करने के लिए सक्षम हम भारत के लोग भारत को एक अंगीकृत अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं शब्द भारत के लोगों की सर्वोच्च प्रभुता की घोषणा करते हैं और इस बात की ओर संकेत करते हैं कि संविधान का आधार उन लोगों का प्राधिकार अथॉरिटी है प्रवक्ता का अर्थ है कि राज्य को स्वतंत्र अधिकार है अर्थात राज्य को किसी भी विषय पर विधायन बनाने की शक्ति है वह किसी अन्य राज्य का बाह्म शक्ति के नियंत्रण के अधीन नहीं है

स्वतंत्रता

उद्देश्यका मै  जिन स्वतंत्रता ओं का उल्लेख है उन्हें अनुच्छेद 19 और अनुच्छेद 25 से 28 में स्थान दिया गया है संविधान की उद्देशिका में स्वतंत्रता लिबर्टी का अभिप्राय केवल नियंत्रण या अधिपत्य का अभाव ही नहीं है इसमें विचार अभिव्यक्ति विश्वास धर्म उपासना की स्वतंत्रता के अधिकार की सकारात्मक संकल्पना भी शामिल है किसी व्यक्ति की अपनी इच्छा के अनुसार कार्य करने की स्वतंत्रता मतदान मैं भाग लेना प्रतिनिधियों को चुनना निर्वाचन में खड़ा होना सर्वजनिक पद पर नियुक्ति का अधिकार सरकारी नीतियों की आलोचना करना इत्यादि राजनीतिक स्वतंत्रता है

न्याय

न्याय की स्वतंत्रता और रक्षा हेतु भारतीय संविधान निर्माताओं ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर विशेष जोर दिया प्रस्तावना में सभी नागरिकों को न्याय का आश्वासन दिया गया है न्याय का तात्पर्य है व्यक्तियों के परस्पर हितों समूहों के परस्पर हितों के बीच एवं व्यक्तियों तथा समूह के हितों के बीच सामंजस स्थापित हो वास्तव में न्याय की संकल्पना बहुत ही व्यापक है यह केवल संकीर्ण कानूनी न्याय तक की सीमित नहीं है जो न्यायालय द्वारा दिया जाता है इसमें सामाजिक राजनीतिक तथा आर्थिक सभी तरह के न्याय को महत्व दिया गया है

सामाजिक न्याय

सामाजिक न्याय का तात्पर्य है कि मानव मानव के बीच में जाति वर्ण के आधार पर भेदभाव ना माना जाए और प्रत्येक नागरिक को उन्नति के पर्याप्त अवसर उपलब्ध हो राजनीतिक न्याय का तात्पर्य है कि राज्य के अंतर्गत समस्त नागरिकों को समान रूप से नागरिक एवं राजनीतिक अधिकार प्राप्त हो आर्थिक न्याय से अभिप्राय है कि उत्पादन एवं वितरण के साधनों का न्यायोचित वितरण हो और धन संपदा का केवल कुछ ही हाथों में केंद्रीकरण ना हो जाए इस प्रकार प्रस्तावना में उपबंध न्याय के विचारों से लोक कल्याणकारी राज्य का विचार दृष्टिगोचर होता है और नागरिकों को अन्य क्षेत्रों में न्याय का आश्वासन भी दिया जाता है

समानता

समानता इक्वलिटी का तात्पर्य है कि अपने व्यक्तित्व के समुचित विकास के लिए प्रत्येक मनुष्य को समान अवसर उपलब्ध होने चाहिए समस्त नागरिकों को देश के शासन विधान में समान भाग मिलना चाहिए समान श्रम एवं समान योग्यता के लिए वेतन भी समान होना चाहिए इसके साथ साथ किसी एक व्यक्ति या एक वर्ग को दूसरे व्यक्तियों अथवा वर्गों के शोषण करने का अधिकार नहीं होना चाहिए
भारतीय संविधान की नजर में सभी नागरिक समान होंगे तथा उन्हें देश की विधियों का समान रूप से संरक्षण प्राप्त होगा इसे साथ ही संविधान की प्रस्तावना में सभी नागरिकों को अवसर की समानता भी प्रदान की गई है सार्वजनिक स्थानों में प्रवेश तथा लोक नियोजन के विषय में धर्म मूल वंश स्त्री पुरुष या जन्म स्थान के आधार पर एक व्यक्ति और दूसरे व्यक्ति के बीच कोई भेद नहीं होगा

पंथनिरपेक्ष राज्य

अनेकों मतों को मानने वाले भारत के लोगों की एकता और उनमें बंधुता की भावना स्थापित करने के लिए संविधान में पंथनिरपेक्ष राज्य का आदर्श रखा गया है इससे तात्पर्य है कि राज्य सभी मतों की समान रूप से रक्षा करेगा और स्वयं किसी भी मत को राज्य के धर्म के रूप मैं नहीं मानेगा पंथनिरपेक्षता स्कॉलर रेशम भावना का प्रश्न नहीं है यह विधि द्वारा लागू किया गया है राज्य के इस पंथनिरपेक्ष उद्देश्य को विशेष रूप से उद्देशिका में संविधान संशोधन अधिनियम 1976 42 वा संशोधन द्वारा पंथनिरपेक्ष शब्द अंत स्थापित करके सुनिश्चित किया गया है पंथनिरपेक्षता संविधान के आधारिक लक्षणों में से एक है

समाजवाद

समाजवादी शब्द मूल उद्देश्य का में सम्मिलित नहीं था बल्कि वर्ष 1976 में 42 वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा संविधान की उद्देशिका में अंतर्निहित किया गया है समाजवाद शब्द का आशय यह है कि ऐसी व्यवस्था जिसमें उत्पादन के मुख्य साधनों पूंजी संपत्ति जमीन आदि पर सर्वजनिक स्वामित्व नियंत्रण के साथ वितरण में समतुल्य सामंजस्य हो इसका तात्पर्य है नहीं है कि भारतीय संविधान निजी संपत्ति के उन्मूलन में विश्वास रखता है बल्कि यह उस पर कुछ प्रतिबंध लगाता है जिससे उसका उपयोग राष्ट्रीय हित में किया जा सके आर्थिक क्षेत्र में राज्य का बढ़ता हस्तक्षेप और भागीदारी वर्तमान सदी का एक विशेष उपलक्ष्य है वर्तमान परिपेक्ष में दुनिया का कोई ऐसा देश नहीं है जहां विभिन्न औद्योगिक आर्थिक और व्यवसाय क्षेत्र के प्रबंध मैं वहां की सरकार सक्रिय रूप से भागना लेती हो समानतयाइसको राज्य की प्रक्रिया पर समाजवाद का प्रभाव माना जाता है भारतीय संविधान में किए गए अनेकों संशोधनों से स्पष्ट होता है कि इसकी प्रगति की दिशा लोकतांत्रिकनहीं समाजिक आदर्शों की ओर उन्मुख है और इसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए यह संशोधन किए जा रहे हैं

बंधुता

सर्व सामान्य नागरिकों से संबंध उप बंधुओं का उद्देश्य भारतीय बंधुत्व की भावना को मजबूत करना और एक सुदृढ़ लोकतंत्र का निर्माण करना है यदि सभी लोगों के बीच बंधुता की भावना उत्पन्न नहीं होगी तो भारतीय लोकतंत्र कमजोर हो  सकता है यह भावना होनी चाहिए कि हम सभी लोग एक ही भूमि की एक ही मातृभूमि के पुत्र हैं यह भारत जैसे देश के लिए और भी आवश्यक है क्योंकि भारत में विभिन्न मूल वंश धर्म भाषा और संस्कृति वाले लोग हैं बंधुता का एक बेसिक पछ भी है जो विश्व बंधुता की संकल्पना बसु देव कुटुंबकम के प्राचीन भारतीय आदर्शों की ओर ले जाता है उन स्थानों में जहां संविधान की भाषा स्पष्ट है व्याख्या ए तू प्रस्तावना में निहित दर्शनों का आश्रय लिया जाता है प्रस्तावना संविधान का भाग है मौलिक अधिकारों तथा नीति निदेशक तत्व की परिधि निर्धारित हेतु इसका उपयोग किया जा सकता है संवैधानिक प्रावधानों के स्पष्टीकरण जीतू इसका उपयोग किया जाता है प्रस्तावना भारत को संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न समाजवादी पंथनिरपेक्ष प्रजातांत्रिक गणराज्य घोषित करती है किसी भी स्वतंत्रता राष्ट्र की शासन व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए उपयुक्त दिशा निर्देशों की जरूरत होती है और इन दिशानिर्देशों का एकमात्र स्रोत उस देश का संविधान होता है जो कि उस देश की सर्वोच्च मौलिक विधि भी होती है अंत एक अच्छा संविधान राष्ट्र के पूर्ण विकास में भरपूर योगदान एवं सहायता दे सकता है जिसे उस देश की जनता ने स्वयं अथवा देश की संविधान निर्मात्री सभा ने अपने अनुभव से निर्मित किया हो संविधान निर्मात्री सभा द्वारा संविधान निर्माण स्वाधीन राष्ट्र का लक्षण है निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा संविधान के निर्माण संबंधी अधिकार की मांग का प्रथम स्वाधीनता की मांग से है

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